सोमवार, 19 दिसंबर 2016

जरिया

नेताओं कि जुबां बनकर भी,
जान दे आते है........
फिर आज इन मजहबों की,
आवाज बन जाते है.......
क्यों
क्यों मज़ाक बना देते है, इनकी अमर कहानी का.....
अपना हुनूर दिखाने का इतना ही शौक है तो,
बिना उनके हिन्दुस्तां में बोल में दिखाएँ. ....।
जरिया बना देते है, अपनी जुबानों का....
खुद जुबां पर खुद को भरोसा नहीं,
उन्हें क्या पता हुसूल-ए-जुबां,
अरे जब खुद कुछ ना कर सके,
उनसे तहज़ीब कि तमीज की उम्मीद नहीं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

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