अब ना बजेगें आंगन में 'कंगन',
अब ना सुनेगा वो आंगन कि 'बेटा',
अब ना गुंजेगी फूल की अवाज कि 'अप्पा'.
अब ना होगा शोर उस आगन में 'पर्व' का,
अब ना सजेगा उस मांग में 'सिन्दूर',
अरे लकीरों पर खड़ा रहने वाला तो चढ़ गया आसमां,
अब ना खीचेगीं लकीरें उन चेहरों पर।
@--सीरवी प्रकाश पंवार
शहीद दिवस
कारगिल युद्ध जीत
26 जूलाई
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