आपने ही लोगो से हंगामें करवा रहे,
कभी औरो को करते देखा नहीं,
जुबां खोलने की ढील क्या दे दी,
अपनों पर ही घात लगाए बेठे हैं,
इन्हे क्या पता सर्दी-गर्मी क्या होती,
एक रात उनके साथ बिताओ तो ज़रा,
माना की कद्र करना आपके नसीब में नहीं,
उनके बलिदान पर सक तो मत करो ज़रा,
-सीरवी प्रकाश पंवार
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