क्या आस रखूँ में अपनों से, ख़यालों तक में ला नहीं सकूँ, मंजिलों की आसां राहों की, दुआ तक मै कर नहीं सकूँ।
मै क्या दुआ करू अपनों के लिए, क़िस्मत खुद मेरा साथ नहीं दे रहीं, साथ चलने के पहले सोच लेना ज़रा, राहें कठिन मगर मंज़िले पास मेरे रही। --seervi prakash panwar
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