सोमवार, 19 दिसंबर 2016

"सपने"

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चाहत तो उसकी आसमां छूने की,
पर लकीरों ने फिर झूका दिया,
किस्मत क्या साथ देगी उन पंच्छीयों का, जिनके पंखो को उड़ान के पहले काट लिया।
लकीरों ने तो किसको ना रोका,
जो होता है तौड़ कर ही होता,
पर जो लकीरों की आहट में करे,
सपने उन्ही के होते।
महफ़ील के सागर का,
मंढर सा घूट नहीं,
मंझील तो तकदीर में लिखी होती,
पर सपनों को लकीरों का साथ नहीं ।
--- सीरवी प्रकाश पंवार

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