गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

सब पता हैं....

सब पता है.....
बचपन से ही शौक था, चेहरे की लकीरों पर बैठकर नयन सागर घटाओं को पहचानने का।
एक अलग राह हैं मेरी, शौक बनाया था, पर अब पहचान बना रहा हूँ।
पर एक कांटा चुभ रहा हैं। पता था मुझे, अंगुली तो उठेंगी और उठना भी वाकिफ़ हैं-जब दूसरा पहलू ही नहीं तो सिक्का क्या काम का।मै पूर्ण रूप से इस बात से सहमत हूँ, उनसे और उन अंगुलियों।
पर आंगुलियो की वजह भी तो होनी चाहिए और जहाँ तक हैं मुझे तो दो ही वजह लगती,
एक मुद्दा तो उन लोगो का "इश्क़ ख़िलाफ़त जिन्दगी" है।
   पर यह इतना वजूद नहीं रखता, क्यों की वो मेरे जीने का तरीका हैं।
और जब मुझे माँ के लिए लिखना होता हैं तो लिखता हूँ और लिखूंगा भी। और यहा पर वो पूर्णतया गलत हैं।पर वो कर भी क्या सकते "माँ" का मतलब नहीं पता उन्हें, मज़ाक लगता हैं उन्हें।पर बात जब दूसरे मुद्दे पर आती हैं, तब दुःख होता हैं कि इन्हे मेरी हिंदी-उर्दू से भी समस्या होती हैं। पर लेखन की अभिरुची बढ़ाने के लिए वो भी जरूरी हैं, बिन उसके लिखने का महत्व ही क्या रहेंगा।
और शायद जहा तक मुझे लगता है उनकी यह अंगुली भी गलत है, क्यों कि वो एक शैली हैं। और मुझे लगता हैं वो यह नहीं जानते।
पर आदत इंसान को सर-बल गिराने को मजबूर करती हैं, जो आज मेने किया हैं।
पर एक महत्वपूर्ण बात यह भी हैं कि वो अंगुली परायो की नही हुई, तब मेने 15,नवंबर की रत को लिखा था...
गुज़ारिश की थी खुद से,
एक इम्तहां तो लेकर देख,
हर बार आपनो का भेज है,
ज़रा परायो को भेज कर देख।

और अगर हिदायत उनके कम नहीं आ रही तो उनका भविष्य साफ दिख रहा।
मेरी तो ज़िद है लिखना....

कि फिर अंगुली उठी,
मेरी उन राहों पर,
जो शोकिया आदत से बनी,            वजह पहले भी अहसास और आज    भी,
पर फर्क आंगुलियो में नहीं,
मेरी ज़िद में है।
--seervi prakash panwar
December 22,2016

    

सोमवार, 19 दिसंबर 2016

"ISHQUE" A DIFFERENT THINK "ईश्क" एक अलग सोच

"ISHQUE" A DIFFERENT THINK
Two type of love
1. FIRST LOVE- comes in our life before birth.
Only two person- 1. Mother 2. father
and end of this love is our death or destination.
2.SECOND LOVE- comes in our life after birth.
Many person come in our life because of this love but
end of this love is only one person. That is yours wife. Many activities being in our life that we call as love is come as second love. But we understands our first love.
And
'THE DESTINATION OF LIFE IS START FORM
THIS POINT'.
Some time we say right that our first love is last love. But we don't know that who is our first love and when starts our first love.
My thought is that if any person want that his/her first love starts before his/her birth. Then he/she success in his/her life.
And
This thought contain in my poem. That name is " ISHQUE A DIFFERENT THINK " happen on a little incident of my life.
"ईश्क"
एक अलग सोच
मत ताक की क्या औकात है मेरी, हर राह पर नाम लिखा है उसका।
इश्क ना करते हम दोबारा, क्योकि बेवफाई की कोई हद नहीँ रखते।
इश्क तो पैदा होने के पहले का, बेवफाई की नामोँ-निशां नहीँ।
अगर कर दी बेवफाई उससे, धड़कने पत्थर छोड़ देगी।
ईश्क ना चाहते किसी से, बस अद्रढ़ लकीरेँ बनाने की सोच से।
लकीरोँ पर चलना छोड़ दिया, मगर मुमकिन नहीँ आँखेँ चार करने मेँ।
टूटते हूँए सपनोँ के पन्नोँ पर, खुद का ही इतिहास लिखुँ तो,
ईश्क की तुच्छ सरहदो के आगे , मुझे ही राह दिखाते,
मालूम नहीँ उन्हेँ मेरा, ईश्क मेरे से पहले का,
हर पल जीता है उसका, बस एक पल अत्ता करने मेँ,
Writer – seervi prakash panwar

गीत - "माफ करना....

गीत - "माफ करना....
एक लम्हा जो मुझसे तेरा रहा,
एक वादा जो तुझसे मेरा रहा,
जो लम्हे तोड़े मैने तेरे ही थे,
जो वादे तो मेरे निभा ना सका,
माफ करना......
माफ करना ऐ माँ मैँ कुछ कर ना सका।
एक आँसू जो मुझसे तेरा रहा,
एक झूट जो तुझसे मेरा रहा,
जो आँसू बहाएँ मैने तेरे ही थे,
जो झूट तो मेरा सच बना ना सका,
माफ करना......
माफ करना ऐ माँ मैँ कुछ कर ना सका।
एक सपना जो मुझसे तेरा रहा,
एक जन्नत जो तुझसे मेरी रहीँ,
जो सपने तोड़े मैने तेरे ही थे,
जो जन्नत तो मेरी सजा ना सका,
माफ करना......
माफ करना ऐ माँ मैँ कुछ कर ना सका।
हर एक पल जो मुझसे तेरा रहा,
एक विश्वास जो तुझसे मेरा रहा,
जो पल ना समझे मैने तेरे ही थे,
जो विश्वास तो मेरा मैँ रख ना सका,
माफ करना......
माफ करना ऐ माँ मैँ कुछ कर ना सका।
लेखक - सीरवी प्रकाश
पंवार

मै कैसे बचाऊ

मै कैसे बचाऊ इन डूबती हूई कश्तीयोँ को,
डूबने का इतना शोक ना होता तो,
नाव मेँ छेद ना करते।
-सीरवी प्रकाश पंवार

फिर अंगुली उठ......

Image may contain: sky, cloud, outdoor, nature and textफिर अंगुली उठी,
मेरी उन राहोँ पर,
जो शोकिया आदत से बनी।
वजह पहले भी अहसास 
और आज भी,
पर फर्क अंगुलियोँ मेँ नहीँ
मेरी जिद मेँ है।
-सीरवी प्रकाश पंवार

विस्वास है खुदा पर..............

Image may contain: tree and skyविस्वास है खुदा पर,
मांगता हूँ हर दूआ मेँ,
सांसे मत रोकना जब तक,
अता न कर दूँ वो पल,
आशियाने मेँ उसके जो,
दुनिया के रंगोँ के पहले।
@-सीरवी प्रकाश पंवार

तेरी गलियो का रंग जाना पहचाना लगता है...........

Image may contain: one or more people, night and outdoorतेरी गलियो का रंग जाना पहचाना लगता है,
तेरी लिए हमेशा आना जाना रहता है,
तेरी नजरो का रंग फिका तो नहीँ,
पर मेरी नजरो का कोई रंग ही नहीँ।
@-सीरवी प्रकाश पंवार

टूटते हूँए सपनो के पन्नोँ पर.............

Image may contain: plant, outdoor and nature
टूटते हूँए सपनो के पन्नोँ पर,
खुद का ही इतिहास लिखुँ
तो,
ईश्क की तुच्छ सरहदो के आगे ,
मुझे ही राह दिखाते,
-seervi prakash panwar
A part of poem ishque a different think

''वीर'' 'एक साहस'

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अब ना बजेगें आंगन में 'कंगन',
अब ना सुनेगा वो आंगन कि 'बेटा',
अब ना गुंजेगी फूल की अवाज कि 'अप्पा'.
अब ना होगा शोर उस आगन में 'पर्व' का,
अब ना सजेगा उस मांग में 'सिन्दूर',
अरे लकीरों पर खड़ा रहने वाला तो चढ़ गया आसमां,
अब ना खीचेगीं लकीरें उन चेहरों पर।
@--सीरवी प्रकाश पंवार
शहीद दिवस
कारगिल युद्ध जीत
26 जूलाई

"सपने"

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चाहत तो उसकी आसमां छूने की,
पर लकीरों ने फिर झूका दिया,
किस्मत क्या साथ देगी उन पंच्छीयों का, जिनके पंखो को उड़ान के पहले काट लिया।
लकीरों ने तो किसको ना रोका,
जो होता है तौड़ कर ही होता,
पर जो लकीरों की आहट में करे,
सपने उन्ही के होते।
महफ़ील के सागर का,
मंढर सा घूट नहीं,
मंझील तो तकदीर में लिखी होती,
पर सपनों को लकीरों का साथ नहीं ।
--- सीरवी प्रकाश पंवार

कण कण है वीर की पूकार...........

कण कण है वीर की पूकार,
सम्भल जा ए तू पाकिस्तान।
हरकतों से हैं सब वाकिफ, 
मोहलत ना देगे अगली बार।
वफ़ादारी तो यहाॅ की माँ में हैं,
खेल ना होगा अगली बार।
जितना चाहों रोक लो,
हम तिरंगा फहराएगें बार बार।
----seervi prakash panwar
15-August-2016

धागों का नहीं ये रिश्ता,

धागों का नहीं ये रिश्ता,
खून का बना है,
एक दिन का नहीं ये रिश्ता,
जन्मों-जन्मों का बना है।
--seervi prakash panwar

फिर अपनी हैवानियत....

Image may contain: one or more people and text"फिर"
अपनी हैवानियत
दिन गुजर गए,
रातें बीत गयी,
पर......
पर नही थकते,
इन आॅखों के मंझर,
उत्साहिता होती हर पल,
बचकानी बनने को,
क्यों हूई एक बार उसकी,
जिन्दगी में हेर फेर,
जूदाईयाॅ लम्बी हो गयी,
ओर फिर क्यो भरा उसका,
नयन सागर रक्त से,
सागर तो दर्द बता रहा,
पर.....
रक्त पता नहीं,
पता नहीं.....
लगता है जलाएगा,
पर किसे....
अपने कलजे के टूकडे को,
या.....
फिर यू ही शान्त होकर मूझे,
लिखने को मझबूर कर रही,
पर पता नहीं....
कोनसे शब्द सागर से बयां करू,
आज फिर लफ्जों की कमी मुझे,
निचा दिखा रहीं,
या......
दर्द लिखने का प्रोत्साहन दे रही,
ऐ.....
खुदा माफ करना मुझे,
कि फर्क नहीं कर पा रहा में,
महिनों का दर्द बयां करू,
या....
दो पल का अहसास,
अहसास मूझे भी ना हूआ,
पर...
आंसुओ कि इस जिन्दगी में,
दर्द ही बयां कर पा रहा,
कि बस.....
फिर अपनी हैवानियत।
---सीरवी प्रकाश पंवार

Tere khubsoor lafjo ki....

Tere khubsurt lafjo ki khtae likhi thi,
Pr tere aansuo ki khtao ne rok liya,
Pr teri bewfai ke fir unhi aansuo ne,
Fir vhi se shru kiya.
--seervi prakash panwar

इंतजार

Image may contain: dog and textयह ईश्क है दफ्तर का अखबार नहीं, 
जन्म से पहले का है हर रोज का नहीं।
--सीरवी प्रकाश पंवार
©©
इनका भी कोई इंतजार करता है।

क़िस्मत

क्या आस रखूँ में अपनों से,
ख़यालों तक में ला नहीं सकूँ,
मंजिलों की आसां राहों की,
दुआ तक मै कर नहीं सकूँ।
मै क्या दुआ करू अपनों के लिए,
क़िस्मत खुद मेरा साथ नहीं दे रहीं,
साथ चलने के पहले सोच लेना ज़रा,
राहें कठिन मगर मंज़िले पास मेरे रही।
--seervi prakash panwar

उड़ान

मासूम हूँ पकड़ मत,
अभी उड़ी हूँ रोक मत,
चाँद पर भी पहला कदम रखा है हमने,
ज़रा आसमां की उच्छाईया तो छूने दे।

कभी शरीर पर से,
कभी कपड़ो पर से,
अंगुली उठाई है चरित्र पर,
ज़रा आपने अन्दर झांक कर तो देख।
-सीरवी प्रकाश पंवार

कद्र

आपने ही लोगो से हंगामें करवा रहे,
कभी औरो को करते देखा नहीं,
जुबां खोलने की ढील क्या दे दी,
अपनों पर ही घात लगाए बेठे हैं,

इन्हे क्या पता सर्दी-गर्मी क्या होती,
एक रात उनके साथ बिताओ तो ज़रा,
माना की कद्र करना आपके नसीब में नहीं,
उनके बलिदान पर सक तो मत करो ज़रा,
-सीरवी प्रकाश पंवार

गुज़ारिश

गुज़ारिश की थी खुदा से,
ईक इम्तहां तो लेके देख,
बहुत भेज दिया अपनों को,
ज़रा पराये तो भेज कर देख।
-सीरवी प्रकाश पंवार

तक़रार

मेने अपनी पहचान खोयी है तुजे पाकर,
आँखों में है हँसी,
फिर भी तर्क कहा पर हैं,
यह राहे चल रही है,
फिर भी तक़रार कहा पर हैं,
क्यों हैं हम एक दूसरे से अलग,
ज़रा सोचो तो थोडा,
जीना तुझ को भी हैं, मुझे भी हैं
--सीरवी प्रकाश पंवार

ख़िलाफ़त

यहाँ हर कोई अपना बेगाना लगता हैं माँ,
न जाने क्यों हर कोई बेसहारा लगता हैं माँ,
एक कदम मेने आगे क्या बढा लिया,
पूरा जग क्यों ख़िलाफ़त लगता है माँ।
--सीरवी प्रकाश पंवार

माँ आशियाने में छुपा ले ज़रा

कोई देख रहा है मुझे,
माँ आशियाने में छुपा ले ज़रा,
भोर की महक होठों से देकर,
माँ सपनो की दुनिया से जगा ले ज़रा,
ओढ़नी की आड़ में छुपाकर,
माँ दुग्ध पान करा ले ज़रा,
अमृत नील से तृप्त कर,
माँ आँखों में काजल लगा ले ज़रा,
दर्पण में खुद को ही दिखाकर,
माँ चेहरे पर लकीरें बना दे जरा,
फिर वो वीरांगना सुनकर,
माँ हर्दय उत्प्लावित कर दे ज़रा,
चेहरे पर थकान देखकर,
माँ सपनो की दुनिया बना दे ज़रा,
फिर वो ही लोरी सुना कर,
माँ तेरी कोख में सुला ले ज़रा,
कोई देख रहा है मुझे,
माँ आशियाने में छुपा ले ज़रा।

कफऩ

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कफऩ अदा मत कर ऐ माँ,
तिरंगा ओढ़ आऊँगा, 
तेरा नाम करू ना करू,
देश का वीर कहलाऊँगा।
--सीरवी प्रकाश पंवार

सबूत

आँखों कि तस्वीरों का सबूत देना पड़ता हैं,
हर एक अंजाम के पहले कान भरने पड़ते हैं,
खुश है वो और देश कि जनता,
फिर भी इन नेताओं की जुबान बनना पड़ता है।
बात फर्क कि नहीं विश्वास की थी,
कर आये सब कुछ फिर भी सबूत देने कीथी,
अरे जान देना लकिरों पर एक अलग बात है,
पर बात जान देकर ज़लील होने की थी।
--सीरवी प्रकाश पंवार

"माँ...... माँ मैं गलत नहीं हूँ..."


माँ......
माँ मैं गलत नहीं हूँ....
फ़सा ले गयी मुझे...
अपने आँखों के आंसू में...
पता नहीं था माँ...
कि जरूरत पड़ीं तो,
आँखों के आंसुओ को,
यु ही बहा देगी.....
माँ......
माँ कद्र ना हूई तेरे...
तेरे आंच...ल..की,
माँ..सोचने ना दिया. ..
तेरे लफ्ज़ो की कहानी को....
माँ पता नहीं था वो....
वो इस चाल से चलेंगी....
माफ मत करना,
ऐ माँ.....
ठुकराया तेरे.....
अल्फाजों को...
पर माँ तूने भी ना रोका. ...
क्यों माँ... क्यों. ...
क्यों कमझोर पड़ गयी...
इन ईश्कबाजों के आगे...
माँ.. माँ मैं जा रहा हूँ...
ये जहाँ छोड़ कर....
माँ... माँ...बस...
बस रोना मत ऐ माँ..
माँ मैं गल.............
........अंत।
--सीरवी
October, 11 2016; 12:13 Am

जुबां

अपने ही आशियानें पर खुद का अधिकार नहीं,
डर बस इतना सा कि कल राजनेताओं की जुबां ना बने,
तमीज़ और तहज़ीब इनके पास नहीं,
ना ही ये दूसरों को देते।
--सीरवी प्रकाश पंवार

जलपरी

मेरे नील संमदर के गहरे पानी की,
इक जलपरी को कोन समझाएँ,
ये पल भर में बेवफ़ाओं को,
वफ़ाएँ करार देती है।
कोई हुसूल है नहीं इसका, 
पल भर का खेल है इसका,
अनन्त सागर कि सुनामी बनकर,
लहरों पर नाच नचाती है।
--सीरवी प्रकाश पंवार

कहा जलाऊ मैं फुलजड़ी. ....

यह अंधड़ सी क्यों चल रही,
दीप जलने क्यों नहीं दे रही,
क्यों यह सुना-सुना आंगन,
फुलजड़ी जलने नहीं दे रहा,
आखिर क्यों वो टेढ़ी-मेढ़ी,
अपना रास नहीं आ रही,
माँ.....
अब तू क्यों जवाब नहीं दे रहीं..
मुझे पता है पापा नहीं आ रहें,
पर माँ आज का अखबार बोल रहा,
वो हजारों पटाखे फोड़ रहें,
माँ......
मत रो भीग रहा है आंगन,
कहा जलाऊ मैं फुलजड़ी. ....
                                                                                                        --सीरवी प्रकाश पंवार

जरिया

नेताओं कि जुबां बनकर भी,
जान दे आते है........
फिर आज इन मजहबों की,
आवाज बन जाते है.......
क्यों
क्यों मज़ाक बना देते है, इनकी अमर कहानी का.....
अपना हुनूर दिखाने का इतना ही शौक है तो,
बिना उनके हिन्दुस्तां में बोल में दिखाएँ. ....।
जरिया बना देते है, अपनी जुबानों का....
खुद जुबां पर खुद को भरोसा नहीं,
उन्हें क्या पता हुसूल-ए-जुबां,
अरे जब खुद कुछ ना कर सके,
उनसे तहज़ीब कि तमीज की उम्मीद नहीं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

आवाज़

ज़रूरी नहीं था की दुनिया के रंग देखुँ,
जिगर का टुकड़ा बनाना भी ज़रूरी नहीं था,
बस ज़रूरी था की जन्नत से गर्भ में पल भर रहूँ,
वेसे तो बेटी कहना भी ज़रूरी नहीं था,
सही कहाँ है किसी ने की किस्मत खुदा के हाथ मे,
मेरा खुदा भी तू और जीना भी तेरे हाथ मे,
शायद मेने जहाँ के रंग कुछ पहले छेड़ दिए,
कि रंग देखने के पहले ज़मी में दफ़ना दिया।
-- सीरवी प्रकाश पंवार

"दर्द"


एक चाहत है मेरी,
परिभाषा देने की,
उसके इश्क
या फिर
भोलेपन के दर्द की,
क्या करू...
कम पड़ रहे मायने विधाओ में,
लिखु तो
कोनसे पल का,
कभी.....
कभी पन्नें तो
कभी वक्त कम पड़ता
पर....
पर अन्त नहीं
उसके दर्द
और
उसकी वसियतिय हरकतों का।
--सीरवी प्रकाश पंवार

ज़ालिम

कोई हिन्दू पैदा नहीं होता,
ना कोई मुस्लिम पैदा होता,
माँ की कोख से कोई,
ज़ालिम पैदा न होता,
इस दुनिया के रंग और भेद से ही,
इंसान ज़ालिम नही होता।
बस चढ़ते है रंग दुनिया के न्यारे,
कोई इंसा तो कोई आतंकवादी बनता,
हाँ इरादे तो सभी के होते,
पर उनके मजबूत इरादें इंसान ही बनाता।
-सीरवी प्रकाश पंवार
December 01,2016;

"ममत्व या मजबूरी"


चुम्भन सा होता किसी, पंच्छी के तड़पाहन के पल,
पर अब चुम्भन उत्साहीता को,
धड़कने पत्थर रोक रही,
और उत्साहीता बचकानी बन,
उकेरने मूझे मज़बूर कर रही,
जब भी गुंजती है........
थाप की अवाज,
याद आ जाती........
उस पंच्छी की तड़पाहन,
एक नहीँ अनेक पलोँ सी,
अपने सपूतोँ के कुकर्मोँ की,
नीव की लकड़ी।
शायद अगले क्षेतिजोँ का फल,
पलोँ पहले भोग रहीँ,
बस एक पल,पल बिताने ,
पलोँ पहले इंतजार कर रहीँ,
ममत्व कहूँ या मज़बूरी ,
चुम्भन मज़बूरी की ओर,
और
उत्साहीता ममत्व की ओर,
उकेरने मूझे मज़बूर कर रहीँ।
- सीरवी प्रकाश
पंवार

कोई लौटा दे मेरा बचपन

कद भर के आशियाने पर,
नन्हें पैरो को हिलाते हुए,
नील आसमां में चंचल मन से,
पंछियो की नई उड़ानों क बीच,
उगते हुए सूरज को देखना,
कोई लौटा दे मेरा बचपन।

छोटे से जल सागर के,
नीर में अटखेलियां खेलते,
तन चंचल करते मासूम हाथ,
फिर काला चन्दन लगाकर,
दुग्ध पान कराती माँ को,
पैरों से उसे ही मारना,
कोई लौटा दे मेरा बचपन।