बुधवार, 19 अप्रैल 2017

ख़त तिरंगे का..

पन्नें जब पलटे ख़त के तो एक लफ़्ज ना रहा रूह में,
मासूम जब होठों को ताक रहा तो एक आंसू ना रहा आँखों में,
कल जब तिरंगा ही घर आ जाएंगा तो क्या जवाब दूँ मै नन्ही पलकों को,
गले लगाने का जब मन कर रहा तो हलचल ना रही धड़कनों में।
-सीरवी प्रकाश पंवार

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