रविवार, 30 अप्रैल 2017

कोई शब्द बड़ा नहीं...

कोई शब्द बड़ा नहीं हैं तेरी फटकार के आगे,
कोई गीत बड़ा नहीं हैं तेरी आवाज़ के आगे,
कोई कह गया बक़वास मेरे इन शब्द जालों को,
पर माँ वो इंसान बड़ा नहीं तेरे शब्दों के आगे।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

माँ

पल भर देखूँ तुझे उमीद भरी नजरों से बस यही काफ़ी हैं,
एक टुकड़ा मिल जाए तेरे हाथ से बस यही काफ़ी हैं,
मै क्या वज़ूद रखूँ बिन तेरे इस पराये ज़ग में अपने लोगों से,
माँ पल भर छुऊँ तुझे हर पल के बाद से बस यही काफ़ी हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

डर

एक गीत गा रहा हूँ मै, तेरे भूल जाने के डर से,
एक शब्द गढ़ रहा हूँ मै, तेरे रूठ जाने के डर से,
वैसे बिन रूठे जिंदगी की कहानी कहा बनती हैं,
एक कहानी रच रहा हूँ मै, तेरे ना बोलने के डर से।
--सीरवी प्रकाश पंवार

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

आदत

एक अंगुली उठाने की आदत सी हो गयी तेरी,
फिर हर बात झुठलाने की आदत सी हो गयी तेरी,अब धागा सुई में ही नहीं रहा तो कपड़े का क्या दोष इसमें,
फिर हर एक को अपना बताने की आदत सी हो गयी तेरी।
--सीरवी प्रकाश पंवार

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

आज़ादी


इक आज़ादी मांग रहे, पत्थर नहीं खाने की...
इक आज़ादी मांग रहे, तिरंगा न जलाने की....
मुँह खोल तो दो तुम अपना लाहौर चीर दिखाएंगे,
पर इक आज़ादी मांग रहे, सबूत न दिखाने की...
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

कर्ज चूका दोंगे तुम वीरो का

लाल रेत की तप्त धोरो के बेटों खाना छीन लोगे तुम हक़ का,
सरताज़ को पत्थर से पिटवा कर क्या हक़ अदा कर लोगे तुम दरिंदों का,
अरे देशद्रोहियो से तुम हाथ मिला देते कभी हाल तक न पुछा जवानों का,
नंग्न कर उस वीर चीता को तुम क़र्ज़ चूका दोंगे बलिदानों का।
--सीरवी प्रकाश पंवार

भगत की फांसी और झाँसी की कहानी

वो म्यानों की तलवारें और सर की पगड़ी
कही झुकीं नहीं हैं,
वो पैरो की छाप और आँगन की आवाज
कही खोयी नहीं हैं,
क्यों छोटी-छोटी हरकतों से हिल डुल
रहा है ऐ तू पाकिस्तान,
वो वीर प्रसूता माँ और तिलक लगाने
वाली बहन कही गयी नहीं हैं।

कारगिल की लड़ाई और सर्जिकल स्ट्राइक
को कही भूले नहीं हैं,
वीर भगत की फांसी और झांसी रानी की
कहानी कही फ़ीकी नहीं पड़ी हैं,
कश्मीर के सपनें छोड़ तू लाहोर की
चिंता कर अब,
यहाँ लेखको की कलम और कवियों की
जुबानी कही सोयी नहीं हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

आपनो की तरह..

कोई पढ़ रहा मुझे दिन में जुगनूं की तरह,
वो ही हस रहा मुझ पर रात के तारो की तरह,
मगर सूरज के आगे जुगनूं और चाँद के आगे तारे क्या मायने रखते,
फिर वो ही हस कर हाथ मसल रहा अपनो की तरह।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

सच में झूठ

यहाँ हर कोई उजाले में अँधेरा दिखाता हैं,
यहाँ हर कोई सच में झूठ ढूंढ़ता फिराता हैं,
वो लकीरें का क्या वज़ूद रखती जिन्हें गढ़ा ही मैने हो,
यहाँ हर कोई उन लकीरों के पीछे मेरा भूत नजराता हैं
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

फुटपाथ


सड़के तक महफूज़ नहीं इन अमीर शहरों की यारो,
यहाँ सोना तक मंजूर नहीं इन अमीर लोगों को यारो,
यह सौ फुट की सड़के तुम्हारी पर छः फुट का फूटपाथ तो दो,
पर यह छः फुट का फुटपाथ तक मंजूर नहीं इन बिगड़ैल औलादों को यारो।
--सीरवी प्रकाश पंवार

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

ख़त तिरंगे का..

पन्नें जब पलटे ख़त के तो एक लफ़्ज ना रहा रूह में,
मासूम जब होठों को ताक रहा तो एक आंसू ना रहा आँखों में,
कल जब तिरंगा ही घर आ जाएंगा तो क्या जवाब दूँ मै नन्ही पलकों को,
गले लगाने का जब मन कर रहा तो हलचल ना रही धड़कनों में।
-सीरवी प्रकाश पंवार

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

रूठ जाता हूँ अक़्सर...


रूठ जाता हूँ अक़्सर खुद को अकेले देख कर,
कोई दूर कर रहा मुझे अपना समज कर,
अँधेरे से डर लगता था पर अब आदत हो गयी जीने की,
मगर कोई रौशनी डाल रहा अंधेरो में अकेला समझ कर।
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

इक वज़ह

कोई रूठा हैं अपना, रुठने की इक वज़ह तो पूछु,
कोई हारा हैं अपना, हारने की इक वज़ह तो पूछु,
कम्बख़्त क़िस्मत में वज़ह बनना, हारने की ही लिखी,
पर उसका मेरे से जीतना, जीतने की इक वज़ह तो पूछु।
--सीरवी प्रकाश पंवार

रविवार, 16 अप्रैल 2017

माँ..

कोई जब रूह गढ़ता हूँ तो वो शब्द बन जाता हैं,
कोई जब शब्द गढ़ता हूँ तो वो आवाज़ बन जाता हैं,
मै क्या दर्द लिखु इश्क़ और इश्क़ बाज का,
जब मै रूप गढ़ता हूँ तो वो "माँ" बन जाता हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

सरफिरे


मै सरफिरा हूँ वतन का तुम तिरंगें की बात मत करना,
मै जला हूँ हर चोराहे पर तुम बुझाने की बात मत करना,
जो कल वोट माँगा करते थे आज सबूत मांग रहे हैं,
बलिदान तो हम देंगे ही तुम सम्मान की बात मत करना।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

कोई कह गया ...

कोई कुछ कह गया कि बस खुश रहना तुम,
कोई छोड़ गया कि बस अकेले रहना तुम,
क्या जीना लिखा था मेरे जीने या न जीने से,
पहले भी सुनी जग की अब और सुनते रहना तुम।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

जनाज़ा

तन्हाई के दिन ही सही मगर तुम मिलो तो कही,
झूठी बात ही सही मगर कोई करे तो कही,
जनाज़े की बात करते हो इस जमाने में,
कोई इश्क बाज माँ सही जनाज़ा निकले तो सही।
--सीरवी प्रकाश पंवार

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

उगता हुआ सूरज....

उगता हुआ सूरज हूँ मुझे लक्ष्य मत बना लेना,
दो-चार शब्द लिखता हूँ मुझे बड़ा मत बना लेना,

बड़ी प्यास लगी हैं शब्दों की तेरी हरकतों से,
दोस्त हूँ मै तेरा मुझे अपना दुश्मन मत बना लेना।
--सीरवी प्रकाश पंवार

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

कभी जीत के....


कभी जीत के समंदर का एक लौटा तक नहीं चुराया,
भूखा सोया प्यासा भागा अश्क़ तक नहीं गिराया,
अरे तुम्हे मेरी जीत मुकम्मल क्यों नहीं होती,
पर कभी जीत की ख़ुशी में एक दीप तक नहीं जलाया।
--सीरवी प्रकाश पंवार

रविवार, 9 अप्रैल 2017

जो गीत....

जो गीत कागजो में नहीं था वो एक बूँद से बिख़र गया,
जो धागे रूह तक नहीं था वो एक शब्द से टूट गया,
फिर तो हरकतों को मेरे ही हवाले किया जाना था,
क्योकि जो हक़ीक़त में नहीं था उसे हरकतों में लाया गया.
-सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 8 अप्रैल 2017

मोहब्बत की दीवारे...

मोहब्बत की दीवारों में ज़मानत कहा खो गयी,
तेरी अल्फाज़ो की रातों में नाराजगी कही खो गयी,
मेरे से बेवफ़ाई की वजह मत उगलवा,
देख तेरी जिंदगी हवालात की कैसे हो गयी।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

हम इतने महशूर

हम इतने महशूर भी नहीं कि अखबारो की आवाज़ बने,
इतने इश्क़बाज भी नहीं कि तेरे दिल की जमीं बने,
तुम फस गयी हो इश्क़ के बाजारवाद की दुनिया में,
पर हम इतने मोहताज़ भी नहीं कि खड़े ना हो सके।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

तेरी जिंदगी की मौत से मुलाक़ात....

एक लफ्ज़ रूह से बोल रहा कि क्या जीना लिखा उसमें,
जिसने तुझे जीने का दूसरा सहारा बनाया उसने,
अरे वो हुस्न की मारी पर तू तो इश्क़ का मारा हैं,
तेरी जिंदगी की मौत से मुलाक़ात करा दी उसने।

तेरी माँ की दुआ का मज़ाक बना दिया उसने,
तू सोच नहीं पाया सब कुछ तेरा छीन लिया उसने,
अरे वो बेवफ़ाओ की रानी तू मासूम सा बच्चा,
तेरी ही मासूम हरकतों को बेवफ़ाई का ज़रिया बना दिया उसने।
--सीरवी प्रकाश पंवार

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

कोई अल्फ़ाज जुड़ा....

कोई अल्फ़ाज जुड़ा था तुझसे जो गीत बन गुनगुना रहा हैं,
कोई अश्क़ जुड़ा था तुझसे जो इश्क़ बन बह रहा हैं,
आँखों में तेरा एक राज लिखा था जो तू चुरा रही हैं,
पर एक हुस्न जुड़ा था तुझसे जो कही टूट कर तड़प रहा हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार