सोमवार, 19 जून 2017

असामंजस्य part 1

सपनों ही सपनों में एक ग़ज़ब सा खेल रच गया,
आँखों की उलझनों में हाथों का धागा(राखी) खो गया,
अग़र लिख लिए दो अल्फ़ाज तो माँ शर्मिन्दा हो जाएंगी,
अग़र न लिखा अल्फ़ाज तो समझों कलम से अनर्थ हो गया।
--सीरवी प्रकाश पंवार

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