writer
सपनों ही सपनों में एक ग़ज़ब सा खेल रच गया, आँखों की उलझनों में हाथों का धागा(राखी) खो गया, अग़र लिख लिए दो अल्फ़ाज तो माँ शर्मिन्दा हो जाएंगी, अग़र न लिखा अल्फ़ाज तो समझों कलम से अनर्थ हो गया। --सीरवी प्रकाश पंवार
एक टिप्पणी भेजें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें