मंगलवार, 20 जून 2017

मरहम लगा दे...

मरहम लगा दे ज़ख्मो पर,
तड़प रहा में तेरे लफ्ज़ो पर,
एक रूप जड़ा था आँखों में,
बह रहा हैं आज अश्क़ों में,
धुप पड़ी तेरे हाथों पर,
छवि बना दे मेरे हाथो पर,
आँख लगी हैं तेरी आहट से,
ज़रा धड़कन बढ़ा दे मेरे होठो से,
बेरूप से इन सुखों को पानी की ज़रूरत हैं,
भीगे इन नैनों को हाथों की ज़रूरत हैं,
मुझे मंजूर नहीं इश्क़ की ये आंधी सी हवाएँ,
मगर रूखे इस हुस्न को इश्क़ की ज़रूरत हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

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