"जोरो की हैं.."
रातो के इन सायों में जो तुम,
भूत बन नजर आते हो,
लगता हैं बदलते वक्त की हवा,
वक्त के पहले जोरों की हैं।
अक़्सर इश्क के दौर में जो तुम,
पागल बन नज़र आते हो,
लगता हैं इन शहरों की सड़कों पर,
नंगो की आवाजाही जोरों की हैं।
फिर सूरज बन बादल में छुपते नज़र आते हो तुम,
महफ़िल का मंझर बन उभर आते हो,
लगता हैं सड़को के इन इश्क़बाजो कि,
महफ़िलों में आवाम जोरों की हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार
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