गुरुवार, 29 जून 2017

तेरे इंतजार में...

तेरे इंतजार में कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला,
सपनो में ही कब भोर हो गयी पता ही नहीं चला,
अब मै अश्क़ों में भींगी रात को में कैसे भूल सकता हूँ,
जो रात कब तेरी हो गयी पता ही नहीं चला।
--सीरवी प्रकाश पंवार

रविवार, 25 जून 2017

कभी चुप होकर भी तुझे....

कभी चुप होकर भी तुझे जगाया करता हूँ,
कभी अलग बात करके तुझे हसाया करता हूँ,
जनता हूँ कि जानकर भी कुछ न कर पाओगी,
फिर भी दूर जाकर राज को राज बनाया रखता हूँ।
--सीरवी प्रकाश पंवार
Dear cute

ले आज बस...

ले आज बस लिख लू ख़त इश्क़ का,
आना मेरी महफ़िल में,मै शायर हूँ इश्कबाज़ का,
समंदर भर गहरा हूँ मगर कोई छेद है इस में,
आ आज तुझे भी बता दूँ राज इस छेद का।
--सीरवी प्रकाश पंवार

ले आज बस..

ले आज बस लिख लू ख़त इश्क़ का,
आना मेरी महफ़िल में,मै शायर हूँ इश्कबाज़ का,
समंदर भर गहरा हूँ मगर कोई छेद है इस में,
आ आज तुझे भी बता दूँ राज इस छेद का।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 22 जून 2017

ख़बर हो तुमको ....

ख़बर हो तुमको की बेखबर हूँ तुझसे,
मालूम हो तुझको की दूर हूँ तुझसे,
जो दूर रख कर जो पास रखती हो मुझको,
प्रतीत हो तुझको की पागल हूँ तुझसे।
--सीरवी प्रकाश पंवार
For dear cute

मंगलवार, 20 जून 2017

मरहम लगा दे...

मरहम लगा दे ज़ख्मो पर,
तड़प रहा में तेरे लफ्ज़ो पर,
एक रूप जड़ा था आँखों में,
बह रहा हैं आज अश्क़ों में,
धुप पड़ी तेरे हाथों पर,
छवि बना दे मेरे हाथो पर,
आँख लगी हैं तेरी आहट से,
ज़रा धड़कन बढ़ा दे मेरे होठो से,
बेरूप से इन सुखों को पानी की ज़रूरत हैं,
भीगे इन नैनों को हाथों की ज़रूरत हैं,
मुझे मंजूर नहीं इश्क़ की ये आंधी सी हवाएँ,
मगर रूखे इस हुस्न को इश्क़ की ज़रूरत हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

मरहम लगा दे...

मरहम लगा दे ज़ख्मो पर,
तड़प रहा में तेरे लफ्ज़ो पर,
एक रूप जड़ा था आँखों में,
बह रहा हैं आज अश्क़ों में,
धुप पड़ी तेरे हाथों पर,
छवि बना दे मेरे हाथो पर,
आँख लगी हैं तेरी आहट से,
ज़रा धड़कन बढ़ा दे मेरे होठो से,
बेरूप से इन सुखों को पानी की ज़रूरत हैं,
भीगे इन नैनों को हाथों की ज़रूरत हैं,
मुझे मंजूर नहीं इश्क़ की ये आंधी सी हवाएँ,
मगर रूखे इस हुस्न को इश्क़ की ज़रूरत हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

असामंजस्य 2

मै रात भर नहीं सोया कि कोई शिक़वा गीला ना हो,
मै रात भर नहीं रोया कि कोई अल्फ़ाज भीगा ना हो,
जब डोरे(राखी) की गाँठ तोड़ कर सुई(इश्क़) में पिरोया हो,
तब मै रात भर नहीं लिखा कि वो गर्भ(माँ) शर्मिन्दा ना हो।
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 19 जून 2017

असामंजस्य part 1

सपनों ही सपनों में एक ग़ज़ब सा खेल रच गया,
आँखों की उलझनों में हाथों का धागा(राखी) खो गया,
अग़र लिख लिए दो अल्फ़ाज तो माँ शर्मिन्दा हो जाएंगी,
अग़र न लिखा अल्फ़ाज तो समझों कलम से अनर्थ हो गया।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 17 जून 2017

एक टुक भी ऐसा कहा .......

एक टुक भी ऐसा कहा कि ज़मी दिल की हिला डाली,
एक पल भी ऐसा गढ़ा कि सोचने की मनाही कर डाली,
आंखिर बातों की सच्चाई क्या वज़ूद रखेंगी मेरे सामने,
पर वज़ह भी ऐसी दी कि ज़मी पैर की हिला डाली।
--सीरवी प्रकाश पंवार
For dear cute

शुक्रवार, 16 जून 2017

ख़बर हो तुझको....

ख़बर हो तुमको की बेखबर हूँ तुझसे,
मालूम हो तुझको की दूर हूँ तुझसे,
जो दूर रख कर जो पास रखती हो मुझको,
प्रतीत हो तुझको की पागल हूँ तुझसे।
--सीरवी प्रकाश पंवार

Poembucket

दो लफ़्ज़ क्या लिख...

दो लफ़्ज़ क्या लिख दिए उस फूल के,
ये तो महफ़िलों के मोहताज़ कर ही गए....
दो कदम क्या बढ़ा दिए उसे उठाने के,
ये तो शरीरों के रंग चढ़ा कर ही गए.....
मैरी जिंदगी तो पहले से मुक्कमल हैं साहब,
मै क्या रंग चढ़ाऊँ इन दिलों के.....
दो पल क्या गुजार लिए मुस्कुराहट के,
ये तो इश्क की छाप दिलो पर छोड़ गए...।
--सीरवी प्रकाश पंवार

टुटा अग़र कही तो ....

टुटा अग़र कही तो तेरे लफ़्ज़ सुन दोड़ आया,
बिखरा अगर कही तो तेरी तस्वीर देख जोड़ पाया,
बस लफ्ज़ो की कहानी को एक नया नाम दूँ,
जो नाम देने आया तो शब्द कही भूल आया।
--सीरवी प्रकाश पंवार

जोरों की हैं...

     "जोरो की हैं.."

रातो के इन सायों में जो तुम,
भूत बन नजर आते हो,
लगता हैं बदलते वक्त की हवा,
वक्त के पहले जोरों की हैं।

अक़्सर इश्क के दौर में जो तुम,
पागल बन नज़र आते हो,
लगता हैं इन शहरों की सड़कों पर,
नंगो की आवाजाही जोरों की हैं।

फिर सूरज बन बादल में छुपते नज़र आते हो तुम,
महफ़िल का मंझर बन उभर आते हो,
लगता हैं सड़को के इन इश्क़बाजो कि,
महफ़िलों में आवाम जोरों की हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

दो रत्न क्या जड़ दिए...

दो रत्न क्या जड़ दिए हुस्न में,
ये तो खुद को मुमताज़ समझ बैठे...
कागजों के बीच दो खोटे सिक्के का बजने से,
ये तो खुद को जिस्म के मोहताज कर बैठे...
आंखिर ये जो बेवजूद जीते इन लोगो से,
जीने की इक वज़ह तो पूँछु...
जो पल भर लकीरें क्या गढ़ ली चेहरे पर,
ये तो हर घर की चौखट समझ बैठे...

जब दो शब्द क्या लिख लिए व्यंग्य के,
ये तो खुद को बेउम्र मासूस समझ बैठे...
आंखिर वो जी भी कर क्या कर लेंगे,
जो खुद को सुबह का अख़बार समझ बैठे....
मै तो था ही अज़ीब पैदा होने से ही,
बेवज़ह तुम तो मुझे अलग समझ रहे हो...
आंखिर क्या वज़ूद रखती ये लकीरे मेरे आगे,
जो तुम लोग मुझे इनका मोहताज़ कर बेठे।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 15 जून 2017

हीरो की चमक आजकल .....

हीरो की चमक आजकल रहने कहा दी,
परिंदों को उड़ाने आंखिर उड़ने कहा दी,
जो घर-घर फर्जी परिंदों के घरौंदे बनाए बैठे हो,
रूह पर कपडे की रौनक रहने कहा दी।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 9 जून 2017

तुम दो फ़लक..

तुम दो फ़लक ख़त के लिख कर यू ही मत बिख़र जाना,
तुम उम्मीद बने हो किसी की यू ही मत टूट जाना,
न मिला अग़र कुछ भी फिर वो माँ तो पास रहेंगी तेरे,
तुझे जीना हैं अपनों के लिए यू ही मत रूठ जाना।
--सीरवी प्रकाश पंवार
This is a crime on your parents.

बेवज़ह सोये..

बेवजह सोये पंछी को छेड़ा नहीं जाता,
ना मिले अग़र कुछ भी तो रोया नहीं जाता,
आंखिर वो वजूद ही क्या रखता जो न हो हमारा,
जो न ढूंढे किसी को तो पाया भी नहीं जाता।
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 5 जून 2017

हाथों की लकीरों में...

अक़्सर हाथों की लकीरों में जो ख़ुद को ढूंढा करता हूँ,
जो रूप गढ़ा था एक अबला ने उसे बनाया करता हूँ,
मुझे बस मोहलत मत देना ख़ुदा की ख़ुद के हाथों मौत लिख लू,
उन लकीरों में ख़ुद को पाकर अक़्सर पराया समझता हूँ।
--सीरवी प्रकाश पंवार

रविवार, 4 जून 2017

कभी पढ़ लिया.....

कभी हस लिया करता हूँ खुद को आईने में देख कर,
कभी पढ़ लिया करता हूँ खुद को अकेला देख कर,
यह दो पल की चीजें आंखिर कब पूरी होंगी,
कभी रो भी लिया करता हूँ हाथो की लकीरें देख कर।
--सीरवी प्रकाश पंवार