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ये तलवारे क्या वज़ूद रखती मेरी इन लड़ाइयों के आगे, ये आज कल कि दुकानें क्या वज़ूद रखती मेरी इन भूखों के आगे, तुम जो खेल रच कर अक़्सर शराब पर आ जाते हो, आख़िर वो शराब क्या वज़ूद रखती मेरे इन ज़ख्मो आगे। --सीरवी प्रकाश पंवार
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