शुक्रवार, 5 मई 2017

ये आज कल की तलवारे...

ये तलवारे क्या वज़ूद रखती मेरी इन लड़ाइयों के आगे,
ये आज कल कि दुकानें क्या वज़ूद रखती मेरी इन भूखों के आगे,
तुम जो खेल रच कर अक़्सर शराब पर आ जाते हो,
आख़िर वो शराब क्या वज़ूद रखती मेरे इन ज़ख्मो आगे।
--सीरवी प्रकाश पंवार

कोई टिप्पणी नहीं: