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देखों अपनी जमीं पर कुछ अज़ीब सी हलचल हुई हैं, गोली हैं बन्दूक में फिर भी जमीं पर बिन टोपी पड़ी हैं, वो सरताज़ तप्त और हिम धरा पर क्या उम्मीद रखेंगा हमसे, देखो आज रूह सरताज़ की बिन सर तिरंगें में लिपटी मिली हैं। --सीरवी प्रकाश पंवार
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