गुरुवार, 18 मई 2017

क्या ग़लती...papa

क्या ग़लती थी आपकी नहीं जानता मै,
क्या दुःख था आपका नहीं समझा मै,
हालातों ने बहुत दूर कर दिया खुद को आपसे,
कुछ कर बैठा हूँ ग़लत बस यह मानता मै,

ऐ खुदा
माफ़ मत करना मुझे, बेसहारा किया मैने...
अपने ही हाथों लकीरे, बनाई खुद में मैने...
शायद ग़लती तो उनकी, दुनिया दिखाने की रही होंगी...
मग़र बेवज़ह खुद को, खुद से अलग किया मैने...।
--सीरवी प्रकाश पंवार
18 मई 2017 {आज मै २ साल का हुआ।}
Love you papa

बुधवार, 17 मई 2017

शायद तेरा अकेलापन...

शायद तेरा अकेलापन बहुत कुछ कह जाता हैं,
आँसुओ को आँखों में ही रोक जाता हैं,
भूल जाता हूँ खुद को अपनों की हरकतों से,
फिर तुझे चुप देखकर लफ्ज़ भी टूट जाता हैं।

बहुत कुछ बताया हैं तेरे इन नयन समंदर ने,
बहुत कुछ पाया हैं तेरी इस खामोशी में,
जब साथ हो तुम तो डर न लगा हर मोड़ पर,
हर राह पर चलाया हैं तेरी इन हरकतों ने,
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 15 मई 2017

जो हो नहीं सकता...

जो हो नहीं सकता उसे क्या अख़बार का रूप दूँ,
जो रो नहीं सकता उसे क्या रुठने की वजह दूँ,
तेरी हरकतों का आदी हूँ मै; मुझे तो जमाना जीतना हैं,
जिसे खो नहीं सकता उसे क्या सवालों का जवाब दूँ।
--सीरवी प्रकाश पंवार
For dear cute(-_-;)

तराजू से कभी..

तराजू से कभी समन्दर नहीं तोला जाता,
दिलजलों से कभी प्यार नहीं किया जाता,
आ जाना कभी मेरी महफ़िल में वक्त निकलकर,
क्यों कि हवाओं में कभी इतिहास नहीं उकेरा जाता।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 13 मई 2017

भूल जाता हूँ...

भूल जाता हूँ अक़्सर ख़ुशी के पल तुझे पास देख कर,
सो जाता हूँ अक़्सर बिन नींद के तुझ पर सर रख कर,
जब तू हैं ही मेरे पास तो कोई और क्या वज़ूद रखता माँ,
भूल जाता हूँ साँसे हर रोज की अक़्सर तुझे गले लगा कर।
--सीरवी प्रकाश पंवार
Happy mother's day.
Love you amma and appa

शुक्रवार, 12 मई 2017

तेरे आँखों पर...

तेरे आँखों पर काली पट्टी बंधी हैं कैसे हटाऊँ मै इसे,
एक रूप गढ़ लिया हैं तेरे मन ने कैसे मिटाऊँ मै तुझे,
मुझे सलाखों पर चलाया और सलाखें पानी में थी,
पर वो पानी नहीं तेज़ाब था कैसे बताऊँ मै तुझे।
--सीरवी प्रकाश पंवार

गुरुवार, 11 मई 2017

अज़ीब हूँ..

उज्वल मन के तलवित रिश्तो की,
बागड़ोर तू संभाल कर रखना,
मै तो था अज़ीब, हूँ अज़ीब और
रहूंगा अज़ीब ही,
तू भी ज़रा अज़ीब बन जाना।
--सीरवी प्रकाश पंवा

बुधवार, 10 मई 2017

हलचल

देखों अपनी जमीं पर कुछ अज़ीब सी हलचल हुई हैं,
गोली हैं बन्दूक में फिर भी जमीं पर बिन टोपी
पड़ी हैं,
वो सरताज़ तप्त और हिम धरा पर क्या उम्मीद रखेंगा हमसे,
देखो आज रूह सरताज़ की बिन सर तिरंगें में लिपटी मिली हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

मंगलवार, 9 मई 2017

खूबसूरत सा चंदा धुंए .....

खूबसूरत सा चंदा धुंए की ख़ातिर अड़ा हैं,
कुदरत का करिश्मा देख़ो रूह पर आकर जुड़ा हैं,
जो धुँआ खुद ना टिक सके, उसे मै क्या हटाऊँ,
आंखिर भींगी पलकों का अड्डा सड़कों के किनारे खड़ा हैं।
-सीरवी प्रकाश पंवार

रविवार, 7 मई 2017

मज़ाक़

साहब मज़ाक, आप को यह मज़ाक लगता हैं,
बहनों की इज़्ज़त करना आपको बक़वास लगता हैं,
सोचों अगर कल तुम्हारा कोई अपना हुआ तो क्या करोगे,
पर साहब इस सदी में आपको अपने पराये लगते हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवार

ना चला अग़र..

ना चला अग़र मै तो क्या मेरी राह बन जाओंगे तुम,
ना लिखा पल भर अग़र मै तो क्या अनपढ़ ठहरा दोंगे तुम,
मै नील गगन में बादल की लकीरों से इतिहास तुम्हारा उकेर दूंगा,
तुम्हे ना मिला अग़र कोई तो क्या मुझे ही ज़रिया बना लोगे तुम।
--सीरवी प्रकाश पंवार

शुक्रवार, 5 मई 2017

ये आज कल की तलवारे...

ये तलवारे क्या वज़ूद रखती मेरी इन लड़ाइयों के आगे,
ये आज कल कि दुकानें क्या वज़ूद रखती मेरी इन भूखों के आगे,
तुम जो खेल रच कर अक़्सर शराब पर आ जाते हो,
आख़िर वो शराब क्या वज़ूद रखती मेरे इन ज़ख्मो आगे।
--सीरवी प्रकाश पंवार