seervi prakash panwar
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शुक्रवार, 22 सितंबर 2017
सपनों ही सपनों में ............
सपनों ही सपनों में एक ग़ज़ब सा खेल रच गया,
आँखों की उलझनों में हाथों का धागा(राखी) खो गया,
अग़र लिख लिए दो अल्फ़ाज तो माँ शर्मिन्दा हो जाएंगी,
अग़र न लिखा अल्फ़ाज तो समझों कलम से अनर्थ हो गया।
--सीरवी प्रकाश पंवार
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