शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

मैने कहा..............

मैने कहा, कल रात तुम्हारी
माँ का फ़ोन आया था,
मुस्कुराता हुआ जवाब आया....
व्यस्त हूँ इश्क़ में, कह देना तो जरा!!!
--सीरवी प्रकाश पंवार
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मेरी ज़िद हैं ..............

मेरी ज़िद हैं इस जग़ह के कण-कण में,
मै यहाँ कैसे राह बनाऊँ!
मै टूटा हूँ इस जग़ह पर एक पल में,
मै यहाँ कैसे घऱ बनाऊँ!
ये जो बड़े-बड़े पत्थरों पर नाम लिखकर,
बदनाम जो हुआ हूँ मै!
आख़िर उठा हूँ मै इसी जग़ह से,
मै यहाँ कैसे रूप बनाऊँ!!
--सीरवी प्रकाश पंवार

जो घर -घर घूमने वाला आवारा ..............

जो घर -घर घूमने वाला आवारा समझा हैं मुझे,
क्या यही कीमत थी मेरे विश्वास की....
जो चौराहे पर खड़ा कर मुर्ख समझा हैं मुझे,
क्या यही कीमत थी मेरे लफ्जो की...
इस आवारगी की मूर्खता को पहचानने की गलती कर, 
मज़ाक बनाया हैं मेरा,
जो हर तेरे जिक्र की फ़िक्र की थी मैने,
शायद इस ग़लती की यही क़ीमत थी मेरी खुद की....
--सीरवी प्रकाश पंवार 

हस लेना आज...............

हस लेना आज..मेरी परछाईयों पर, तुम जी भर के!
आख़िर जिन्दगी की राह पर कब तक आँखे झुकाता मै!
रोना पड़े कभी..मेरी धुंधली इन परछाईयों पर, तुम्हे जी भर के!
रो लेना क्यों कि प्रकाश नहीँ होता हर अँधेरे की वज़ह में!!
--सीरवी प्रकाश पंवार

किरायों के घर में कब तक रहता मै...

किरायों के घर में कब तक रहता मै...
खुद का आशियाना बनाना ही पड़ता हैं।


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मै कैसे आऊँ बाहर ...........

मै कैसे आऊँ बाहर यहाँ हर कोई इश्क़ में जाया दिखता हैं!
कही खोये इस जहाँ में ये राखी बिन हाथों नजऱ आती हैं!
वज़ह पूछी उनसे तो कह दिया की इतिहास बयां करेंगा!
ऐ ख़ुदा, वक्त के पहले यहाँ कही इतिहास लिखाया करते हैं!!
-सीरवी प्रकाश पंवार
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तू क़िस्मत की लक़ीर है मेरी................

तू क़िस्मत की लक़ीर है मेरी!
जिस पर हर पल चला करता हूँ!
तू त्यौहार की मेहमान है मेरी!
जिसे हर पल ढूंढा करता हूँ!!
#DeAr CuTe#
--सीरवी प्रकाश पंवार

जो रातों के इन अंधेरों में...............

 
जो रातों के इन अंधेरों में राख़ की होली खेला करते हैं!
जो बेवज़ह बंद डिब्बियों को मज़ाक में खोला करते हैं!
तुम बच कर रहना ऐसे अख़बार वालो से,
जो हुस्न का धंधा लिए घर-घर फिरा करते हैं!!
#DeAr CuTe
--सीरवी प्रकाश पंवार
with a great day

माई, तिरंगे में कौन हैं?....

माई, तिरंगे में कौन हैं?....
कौन हैं माई,कौन हैं?...
माई, वो तेरे माथै की लाली
और हाथों की चूड़ी कहा हैं?...
माई, वो हाथों की मेहँदी
और पैरो की छमछम कहा हैं?..
माई वो तेरे हाथो में सुकून
और आँखों में उम्मीद कहा हैं?..
कौन हैं माई, कौन हैं?
तिरंगे में लिपटा कौन हैं?
माई,सर से तिरंगा तो हटा
ज़रा देखूँ तो कौन हैं...
माई,निच्छल पड़ी बंदूक
और टोपी के पास कौन हैं..
अब जब सांस रही ही नहीं
कैसे बंदूक चलाए,
जब सर रहा ही नहीं
तो टोपी कहाँ लगाए,
जो ज़िद तेरे देखने की हैं
वो सर तो ज़िहादी ले गए,
जो ज़िद तेरे पूछने की हैं
वो जवाब नेताजी ले गए।
अब जब रंगीली दुनिया बेरंग हो गयी,
तब हाथ छूटा हैं तेरे माथे से,
अब जब माथे की लाली उजड़ ही गयी,
तब कोई छूटा है अपना जग से,
अब जब नोटों की गड्डियां घर आ ही गयी,
तब क्या मतलब रहा नेताजी को हम से,
अब कागज़ से बलिदान का कर्ज चूका ही गए,
तब क्या मतलब रहा इन्हे शहादत से,
अब जब एक ओर तिरंगे में घर आ ही गया,
तब क्या मतलब रहा जग को हम से।
साहब
धूर्त हो तुम की बलिदान का कर्ज पैसो से चुकाते हो,
पागल हो तुम की उनके घर जाकर साल ओढ़ाते हो,
हमने एक खोया तो क्या हुआ एक ओर वीर देंगे जमाने को,
मुर्ख हो तुम कि सिर्फ उनकी बातों से बहक जाते हो।
--सीरवी प्रकाश पंवार