माई, तिरंगे में कौन हैं?....
कौन हैं माई,कौन हैं?...
माई, वो तेरे माथै की लाली
और हाथों की चूड़ी कहा हैं?...
माई, वो हाथों की मेहँदी
और पैरो की छमछम कहा हैं?..
माई वो तेरे हाथो में सुकून
और आँखों में उम्मीद कहा हैं?..
कौन हैं माई, कौन हैं?
तिरंगे में लिपटा कौन हैं?
माई,सर से तिरंगा तो हटा
ज़रा देखूँ तो कौन हैं...
माई,निच्छल पड़ी बंदूक
और टोपी के पास कौन हैं..
अब जब सांस रही ही नहीं
कैसे बंदूक चलाए,
जब सर रहा ही नहीं
तो टोपी कहाँ लगाए,
जो ज़िद तेरे देखने की हैं
वो सर तो ज़िहादी ले गए,
जो ज़िद तेरे पूछने की हैं
वो जवाब नेताजी ले गए।
अब जब रंगीली दुनिया बेरंग हो गयी,
तब हाथ छूटा हैं तेरे माथे से,
अब जब माथे की लाली उजड़ ही गयी,
तब कोई छूटा है अपना जग से,
अब जब नोटों की गड्डियां घर आ ही गयी,
तब क्या मतलब रहा नेताजी को हम से,
अब कागज़ से बलिदान का कर्ज चूका ही गए,
तब क्या मतलब रहा इन्हे शहादत से,
अब जब एक ओर तिरंगे में घर आ ही गया,
तब क्या मतलब रहा जग को हम से।
साहब
धूर्त हो तुम की बलिदान का कर्ज पैसो से चुकाते हो,
पागल हो तुम की उनके घर जाकर साल ओढ़ाते हो,
हमने एक खोया तो क्या हुआ एक ओर वीर देंगे जमाने को,
मुर्ख हो तुम कि सिर्फ उनकी बातों से बहक जाते हो।
--सीरवी प्रकाश पंवार