बुधवार, 4 जनवरी 2017

माँ का कवी हूँ....

एक नहीं अनेक माँओ की,
किस्मत की कलम हूँ मै,
किसी का भूत तो,
किसी का भविष्य उकेरा हैं,
अंजान हूँ मगर,
माँ का नाम उकेरा हैं,
छोटी सी कलम हूँ मगर,
किसी माँ की लकीरें उकेरी हैं,
किसी का दर्द उकेरा हैं,
तो किसी का कर्ज उकेरा हैं,
कभी अंगुली उठी हैं,
तो कभी हाथ बजा हैं,
फिर भी माँ कवी हूँ..
चुप नहीं बैठ सकता।
--सीरवी प्रकाश पंवार

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