गुरुवार, 26 जनवरी 2017

जिस माँ ने सिंदूर लगाया था......

जिस माँ ने सिन्दूर गवाया था,
उस माँ ने तिलक लगाया था,
अरे पूछो तुम उस माँ से,
क्या डिब्बी में सिन्दूर कम था,
अरे पूछो तुम उस माँ से,
क्या स्तन में दूध कम था,
अरे तुमने तो राजनीति की आड़ में,
बलिदान का कर्ज नोटों से चुकाया हैं,
फिर वही तिरंगा लहराकर,
जुबां से तीर चलाया हैं,
अरे उस वीर प्रसूता माँ ने,
अपना सिन्दूर और दूध गवाया हैं,
तुमने तो देशद्रोहियो से कन्धा मिलाकर,
फिर उस बलिदान को नीचा दिखाया हैं,
अरे शर्म करो दोहरे चरित्र पर,
तूने तिरंगे को मिट्टी में मिलाया हैं।
--सीरवी प्रकाश पंवारl

रविवार, 8 जनवरी 2017

आज तेरी आवाज में......

आज तेरी आवाज में,
शालीनता कही गायब हैं,
आज तेरी आवाज में,
स्थिरता कही कायम हैं,
आज फिर मेरे दिमाग की,
लकीरें वही कायम हैं,
जरा मिटा देना इन लकीरो को,
यह धागे बहुत पुराने हैं,
भले ही लकीरे न हो इन धागों की,
वसीयत जरूर बनानी हैं।
रिश्ते दिलो के बनना भी जरूरी नहीं,
बस तेरा तेरा जैसा मीत कही देखा नहीं,
भले ही वक्त ना हो बात करने का,
पर तेरे दर्द में याद करना भूलना नहीं।
--सीरवी प्रकाश पंवार
जन्म दिन पर अपनी अजीज मीत क़े लिए।

बुधवार, 4 जनवरी 2017

माँ का कवी हूँ....

एक नहीं अनेक माँओ की,
किस्मत की कलम हूँ मै,
किसी का भूत तो,
किसी का भविष्य उकेरा हैं,
अंजान हूँ मगर,
माँ का नाम उकेरा हैं,
छोटी सी कलम हूँ मगर,
किसी माँ की लकीरें उकेरी हैं,
किसी का दर्द उकेरा हैं,
तो किसी का कर्ज उकेरा हैं,
कभी अंगुली उठी हैं,
तो कभी हाथ बजा हैं,
फिर भी माँ कवी हूँ..
चुप नहीं बैठ सकता।
--सीरवी प्रकाश पंवार

सोमवार, 2 जनवरी 2017

सूखे हुए मंजरों की तस्वीर बनती हैं.....

सूखे हुए मंजरों की तस्वीर बनती हैं
मै हूँ यहाँ मेरी याद कहाँ बनती हैं
भूल मत जाना सुखा मंज़र समझकर,
आग हमेशा इन सूखे मंजर में सुलगती हैं

--सीरवी प्रकाश पंवार