गुरुवार, 30 मार्च 2017

ऐ खुदा मेरे पलड़े में मौत लिख दे

ऐ खुदा मेरे पलड़े में मौत लिख दे,
या मेरी किस्मत का नया आयाम गढ़ दे,
कल भी हारा था आज भी हारा हूँ,
मेरी किस्मत में बस एक जीत लिख दे,

पलकों को कभी जपकया तक नहीं,
फिर यह आँखों के सामने दीवार क्यों?
दिल कभी किसी का दुखाया तक नहीं,
फिर यह आँखों में खालीपन का अहसास क्यों?
अश्क़ हर पल यही पूछते मेरे से कि,
सब कुछ किया भूला कुछ भी नहीं,
फिर भी इन आँखों में वो उम्मीद क्यों?
--सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 18 मार्च 2017

एक गीत रचा हैं मैने....

एक गीत रचा हैं मैने........
एक गीत सुना हैं तूने..........
फिर याद मेरी यू आई,
आँखों से आँसू निकला,
एक गीत रचा हैं मैने...............

वो दिन क्या याद हैं तुझको,
आँखों से मिलन हुए थे,
वो दिन क्या याद हैं तुझको,
जी भर हस कर रोए थे,
जब बात आई अपनों की,
मेने तोड़ा था बंधन पुराना,
एक गीत रचा हैं मैने.......................

एक बात तू याद रखना,
हाथों में हाथ ना दिखेंगे,
एक पल तू याद रखना,
अब बात ना तेरी करेंगे,
तेरी इस बेवफाई को,
मै जन्म-जन्म न भूलूँगा
एक गीत रचा हैं मैने.................
--सीरवी प्रकाश पंवार

शनिवार, 4 मार्च 2017

जरूरी नहीं था ........

ज़रूरी नहीं था की दुनिया के रंग देखूँ,
ज़िगर का टुकड़ा बनाना भी ज़रूरी नहीं था,
बस ज़रूरी था की तेरे गर्भ में पल भर रहूँ,
वैसे तो बेटी कहना भी तो ज़रूरी नहीं था,

सही कहाँ है किसी ने की किस्मत खुदा के हाथ  में,
मेरा खुदा भी तू और जीना भी तेरे हाथ में,
शायद मेने जहाँ के रंग कुछ पहले छेड़ दिए होंगे,
कि रंग देखने के पहले तूने ज़मी में दफ़ना दिया।

शायद खुदा होने नाते माँ तूने मेरा भविष्य देखा होंगा,
कभी लकीरों की आड़ में तो कभी दुष्कर्म की आड़ में जला होंगा,
मान लुंगी माँ लकीरों के आगे तेरी भी मज़बूरी रही होंगी,
फिर भी माँ लकीरों की आड़ में तो भरोसा जलाया होंगा।
--सीरवी प्रकाश पंवार